चुनाव आते ही हमारे
राजनेताओं की जुबान पर बिजली, पानी, सड़क, बेरोजगारी भत्ता, लैपटॉप, मोबाइल और
रोजगार समेत ऐसे कई मुद्दे रूपी जिंद आकर बैठ जाते हैं। जब तक चुनाव चलता है, तब
तक यही भजन चारो ओर सुनने को मिलता है। खास बात यह है कि राम-राम जपना, पराया माल
अपना......वाली कहावत यहां पर बिल्कुल सटीक बैठती है। चुनाव के दौरान इन मुद्दों के
भजन करने और गीत गाने पर खाना-पीना और आना-जाना सब मुफ्त होता है। इस दौरान
गली-खोर में आवारागर्दी एवं मटरगश्ती करने वाले बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता है
और राजनेताओं का भी उल्लू सीधा हो जाता है। राजनेताओं का जनता के घर जाकर वादा
करना और फिर भूलने का सिलसिला बेहद पुराना है। जनता भी इससे वाकिफ है। नेताओं की
वादाखिलाफी से नाराज एक विधवा ने बेहद अजीबोगरीब कदम उठा डाला।
नेताओं के कई बार
वादा करने के बाद गांव में जब बिजली नहीं पहुंची, तो परेशान होकर विधवा ने अपने
बेटे का ही नाम पावर हाउस रख दिया। अपने अनोखे नाम के चलते पावर हाउस बचपन से ही बेहद
लोकप्रिय हो गया था। उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल हुई थी। इस दौरान फिर से चुनाव का
सिलसिला शुरू हुआ और राजनेताओं के जुबान पर फिर वही जिंद आ बैठा, तो पावर हाउस के
गांव के लोग राजनीतिक पार्टियों के समक्ष बिजली पहुंचाने की मांग रखी, तो प्रत्याशी
दंग रह गए। एक नेताजी ने तो यहां तक कह दिया कि भाई आपके यहां तो पावर हाउस है।
फिर काहे को परेशान हो। नेताजी को यह पता नहीं था कि पावर हाउस उनका पावर हाउस
नहीं, बल्कि गांव वालों का पावर हाउस है, जिसका बाप अंधेरे में मर गया था। जब
नेताजी को सच्चाई का पता चला, तो उन्होंने पावर हाउस से मिलने का फैसला किया। भैंस
चरा रहा पावर हाउस सूचना मिलते ही बंदर की तरह उछलता हुआ फौरन नेताजी के पास जा
पहुंचा। नेता जी उसको देखते ही पहचान गए कि कल वह (पावर हाउस) दूसरी पार्टी का
झंडा लेकर नारे लगा रहा था। इससे आग बबूला नेताजी ने उसको सबक सिखाने का मन बना
लिया। हालांकि चुनाव को देखते हुए कुछ बुरा भला कहना उचित नहीं समझा। कुछ देर बाद
नेताजी बेहद सधे हुए शब्दों मे बोले, ‘हमारा गांव इतना
महान है, जहां अगर बाप अंधेरे में मर जाए तो बेटा पावर हाउस बन जाता है।


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